दीपोत्सव पर सतरंगी रोशनी से सराबोर हुआ शहर

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चित्तौडगढ़। पांच दिवसीय दिवसों पर जहां बाजारों में रौनक रही वहीं नगर परिषद के द्वारा विभिन्न स्थानों पर सजावट की गई। व्यापारियों ने भी दीपावली पर अपने प्रतिष्ठानों पर सजावट करने में कोई कमी नहीं रखी, जिससे शहर सतरंगी विद्युत रोशनी से जगमगा उठा और रात्रि को लोग शहर में इसका लुत्फ उठाने के लिए निकल पड़े।

शहर में गोल प्याऊ चौराहा और सुभाष चौक पर सेल्फी प्वाइंट लगाए गए। धनतेरस, रूप चौदस और दीपावली पर लोगों ने सेल्फी लेकर खूब आनंद उठाया वहीं सदर बाजार सब्जी मंडी, नेहरू बाजार, राणा सांगा बाजार गंभीरी नदी पुलिया, नई पुलिया, ईदगाह के सामने, कलेक्ट्रेट चौराहा, प्रताप सर्कल, ओवर ब्रिज, नेहरू पार्क, पद्मनी पार्क, राजीव गांधी पार्क, प्रताप पार्क, फव्वारा चौक इत्यादि स्थानों पर सतरंगी रोशनी से विशेष सजावट की गई।

तो वहीं शहर के प्रमुख मार्गाे के डिवाइडर पर लाइट की लड़ियां लगाकर रोशनी की गई। दीपावली पर्व पर रोशनी से सराबोर हुई शाम में शहरवासी एक दूसरे को राम श्यामा करने के लिए शहर में निकले, जहां जगह जगह लगाए सेल्फी पॉइंट्स पर लोगों ने परिवारजनों, मित्रों सहित जमकर सेल्फीया ली। सुभाष चौक पर भी स्टेज पर शहरवासी पारंपरिक बैंड की सुरीली धुनों पर थिरके, दीवाली की राम श्यामा का दौर रात तक यूंही चलता रहा।

इस बीच सांसद सी पी जोशी, विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने अपने कार्यकर्ताओं के साथ पहुंच दीपावली पर्व की नगरवासियों को शुभकामनाएं दी। दीपावली के मद्देनजर जिला प्रशासन द्वारा भी विशेष इंतजामात किए गए, यहां आने वाली भीड़ को देखते हुए शहर में किसी भी वाहन की एंट्री बंद रखी गई। पुरानी गंभीरी पुलिया, न्यू क्लॉथ मार्केट सुभाष चौक, चंद्रलोक सिनेमा, नई पुलिया पावटा चौक से भीतरी शहर के बीच आने वाली सड़क पर यातायात पुलिस द्वारा बेरिकेडिंग कर दुपहिया, चौपहिया वाहनों को रोककर सिर्फ पैदल आने वाले को ही प्रवेश दिया गया।

गजलक्ष्मी मंदिर में श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़

दीपावली की रात दुर्ग स्थित गजलक्ष्मी मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। देर रात तक दर्शनों के लिये लोगों का आना-जाना लगा रहा। मंदिर तक जाने वाले रास्तों पर गाड़ियों की लंबी कतारें लग गईं। लोग माता के दर्शन कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते नजर आए।

श्रृद्धा के साथ मनाई गोवर्धन पूजा

दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को शहर के विभिन्न क्षेत्रों एवं मंदिरों के बाहर नगरवासियों ने गोवर्धन पूजा पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया, इस मौके पर महिलाओं ने गोबर से बने गोवर्धन की पारंपरिक रूप से पूजा-अर्चना करते हुए सुख-समृद्धि की कामना की। इसी प्रकार शहर एवं अन्य क्षेत्रों की गौ-शालाओं में भी गोवर्धन पूजा कर गौ-माता को लापसी और हरे चारे का भोग लगाकर इस पर्व को श्रृद्धा के साथ मनाया। दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में अपने-अपने घरों के बाहर गोवर्धन की स्थापना कर ग्रामीण महिलाओ ने पूजा की वहीं गौवंश के रूप में बेलों को मेंहंदी लगाकर सुसज्जित कर संध्या वेला में खेखरे का आयोजन किया गया। मेवाड़ क्षेत्र में पारंपरिक रूप से शहरों की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में खेखरे का विशेष महत्व रहा है। इस परंपरा का वर्तमान में भी औपचारिक रूप से ग्रामीणों द्वारा निर्वहन किया गया।

गुर्जर समाज ने पूर्वजों को दिया अर्घ्य

देशवासी जहां दीपावली पर्व को हर्षाेल्लास से मनाने के साथ ही लक्ष्मी माता का पूजन किया करते है वहीं गुर्जर समाज दीपावली का दिन दुखों के रूप में मनाते हुए अपने पुरखों को अध्र्य देते है। जिले में गुर्जर समाज की खासी तादाद है, जिसके चलते दीपावली के दिन समाज के लोग एक तालाब पर एकत्रित होकर स्वंय को आज के दिन दिवालिया मानते हुए तालाब के किनारे अपने पुरखों को अध्र्य देने की परम्परा को निभाते नजर आते है जिसे बेलडी पूजन कहा जाता है। जिले के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले गुर्जर समाज के लोगों ने दीपावली के दिन सवेरे सामुहिक रूप से गांव के तालाब, नाडी और नदी नालों के किनारे जाकर घर से बनाई गई खीर की धूप देकर पानी में बेल की तरह संयुक्त जुड़ कर गन्नें से बेलड़ी बनाते हुए पूर्वजों को याद किया। इस दिन गुर्जर लोग दीपावली को अन्य समाज की तरह हर्षाेल्लास से मनाने के बजाय शोक के रूप में मनाते हुए दुग्ध बेचने सहित किसी प्रकार का कोई व्यापार नहीं किया। गुर्जर समाज द्वारा दीपावली का दिन शोक के रूप में मनाने के पीछे एक कहानी है, जिसके अनुसार भगवान के शिव और पार्वती से जुड़े अध्याय के चलते गुर्जर समाज वर्षाे से इस तरह की पूजा करते रहे है। कहा जाता है कि आज के दिन कई वर्षाे पूर्व गुर्जरों की बेलडी प्रथा का लाभ उठाकर दूसरे समाज के लोगों ने द्वेशवश पीछे से गुर्जरों पर हमला कर उनके सिर धड़ से अलग कर वध कर दिया था, जिसके बाद से समाज इस दिन पुरखों को धूप देने के साथ ही वंश वृद्धि के लिये प्रथा को निभा रहे है।

अन्नकूट पर्व पर सजे विविध व्यंजन और भोग

गोवर्धन पूजा के साथ ही अन्नकूट उत्सव का भी आयोजन शुरू हो गया। घर-घर में तरह-तरह के व्यंजन बनाए गए और भगवान श्रीकृष्ण को भोग लगाया गया। मंदिरों में श्रद्धालुओं ने खीर, दूध, जल, रोली, अक्षत और तुलसी दल अर्पित किए। अन्नकूट के रूप में यह पर्व समृद्धि और कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है। कई मंदिरों में विशेष आरती और भंडारे भी आयोजित किए गए, जिनमें बड़ी संख्या में भक्तों ने भाग लिया। जिले के सभी कस्बों और गांवों में बुधवार का दिन पूरी तरह धार्मिक उल्लास से भरा रहा। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजीं, बच्चों ने भी पूजा में उत्साह से भाग लिया। हर ओर भक्ति गीतों की मधुर ध्वनि गूंजती रही। दीपों की रोशनी और गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर्वत के दर्शन से माहौल भक्तिमय हो गया।

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Ilyas
Author: Ilyas

पिछले 10 वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता

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