- चित्तौड़गढ़ में 72 फीट रावण का दहन, हजारों बने गवाह,
- विजयदशमी पर इंदिरा गांधी स्टेडियम में उमड़ा जनसैलाब,
- फीकी रही आतिशबाजी, लाखों खर्च के बाद भी लोगों को निराशा,
- रिमोट दबाने पर देर से सुलगे पुतले, दर्शकों ने समझा तकनीकी खामी,
- रामलीला मंचन ने बांधा समां, जय श्रीराम के नारों से गूंजा स्टेडियम।
चित्तौड़गढ़ 02 अक्टूबर। विजयदशमी के पावन अवसर पर इंदिरा गांधी स्टेडियम में परंपरागत रावण दहन का आयोजन हुआ।
72 फीट ऊँचे अहंकारी रावण और 51-51 फीट ऊँचे कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतलों का दहन हजारों की भीड़ की मौजूदगी में किया गया।

कार्यक्रम में संत रमता रामजी महाराज, संत दिग्विजय रामजी महाराज और विनोद यति महाराज के साथ सांसद सीपी जोशी, पुलिस अधीक्षक मनीष त्रिपाठी और नगर परिषद प्रशासक विनोद कुमार मल्होत्रा मौजूद रहे।
सांसद सीपी जोशी ने संतों का माल्यार्पण कर स्वागत किया और इसके बाद संतों व जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में पुतलों का दहन किया गया। निंबाहेड़ा से आए जय शिव रामायण मंडल के कलाकारों ने मंच पर रामलीला का शानदार मंचन प्रस्तुत किया।
– आतिशबाजी लोगों को लुभा नहीं पाई, लाखों रुपए बर्बाद होते हुए दिखे
नगर परिषद की ओर से हर साल लाखों रुपए की आतिशबाजी करवाई जाती है, लेकिन इस बार आतिशबाजी बेहद फीकी रही।
दर्शकों को ऐसा लगा मानो आसमानी बमों की जगह केवल फुलझड़ियां आसमान में छूट रही हों।
लोगों ने कहा कि लाखों रुपए खर्च होने के बावजूद इस बार आतिशबाजी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी और कार्यक्रम के अंत में निराशा हाथ लगी।
– रिमोट दबाने पर देर से सुलगे पुतले, दर्शक चौंके
रावण दहन के दौरान जब संतों ने रिमोट का बटन दबाया तो कुछ देर तक रावण नहीं जला।
दर्शकों को क्षणभर ऐसा लगा जैसे कोई तकनीकी खामी रह गई हो।
असल में पुतलों की खास वायरिंग की गई थी।
रावण के पुतले में सबसे पहले उसके मुंह में बीड़ी जलनी थी, फिर धुंआ निकलना था, उसके बाद सिर से चक्कर घूमने थे और अंत में हाथों में आग पकड़नी थी।
इसी तरह कुंभकर्ण और मेघनाद में भी अलग-अलग लेयर से आग लगनी थी। यही वजह रही कि पुतलों को पूरी तरह सुलगने में कुछ मिनट लग गए।
हालांकि इसके बाद रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के तीनों पुतले धू-धू कर जल उठे और भीड़ “जय श्री राम” के नारों से गूंज उठी।
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