ऋषि परंपरा में वेदाध्ययन की अवधि 12 साल इसीलिए आज भी विद्यालयी शिक्षा 12वीं तक: डॉ. संकल्प मिश्र  

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  • निंबाहेड़ा उपखंड कारुण्डा गांव के संस्कृत विद्यालय में हुआ वेद ज्ञान सप्ताह का आयोजन

निंबाहेड़ा। सम्पूर्ण मानवता के हित सम्पादन को लक्ष्य बनाकर सार्वभौम प्रार्थना के लिए पूर्ण विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि वैदिक वाङ्मय का प्रतिपाद्य मानवता के उत्कर्ष के लिए अत्यंत समर्थ, संपन्न और महत्वपूर्ण है। यह वाङ्‌मय अत्यंत व्यापक, सर्वतोमुखी, मानवतावादी तथा परमसंपन्न रहा है। विश्व साहित्य में वैदिक साहित्य का स्थान अत्यंत महत्वशाली है। ये बाते वेद ज्ञान सप्ताह में उज्जैन से आए मुख्य वक्ता डॉ. संकल्प मिश्र मंगलवार को विद्यालय सभागार में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि समस्त विश्व के प्राच्यविद्याप्रेमियों ने वेदों को जो प्रतिष्ठा और उच्चासन दिया है, उसके लिए भारतीय सदा कृतज्ञ बने रहेंगे। वैदिक परंपराओं के अनुरूप ही भारत में शिक्षा सत्र वित्तीय सत्र और विद्यालयी शिक्षा आदि आज भी भारत में प्रचलित हैं। दुनिया में जितनी भी शिक्षा के विषय है कोई भी विषय मानवता और नैतिक मूल्य को नहीं बताता। वेदों के अध्ययन से ही मानव का सर्वांगीण विकास संभव है। यहां तक कि दाल-बाटी जैसे भोजन की उपज भी हमारे पूर्वजों को वेदों से मिला है। मुख्य अतिथि कारुण्डा शास्त्री संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ आनंद शर्मा ने कहा कि वेदों में वर्णित भौतिकी, रसायनशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, जन्तुविज्ञान, प्रौद्यौगिकी, वृष्टिविज्ञान, भूगर्भविज्ञान, अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, भाषाशास्त्र, आचारशास्त्र, कामशास्त्र, कलाएं, संगीत, नृत्य आदि पर सैकडों मन्त्र प्राप्त होते हैं, जिन्हें वैदिक विद्वान वैदिक वाङ्मय से उपस्थापित करते है। परिणाम स्वरूप वर्तमान लगभग सभी विधाओं में वैदिक ज्ञान की मूलता स्वीकार की जाने लगी है। उल्लेखनीय है कि प्रतिपाद्य विषयों का विवेचन करते हुए वैदिक वाङ्मय में जटिल सांसारिक समस्याओं का सम्पूर्ण समाधान प्रस्तुत किया गया है।

विशिष्ट अतिथि राजकीय वरिष्ठ उपाध्याय संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य रामनिवास गुर्जर ने कहा कि ज्ञान – विज्ञान की अनन्तता एवं व्यापकता उसके प्रतिपाद्य की सार्वभौमिकता का सूचक है। इसमें सम्पूर्ण विश्व का समष्टि रूप में चिन्तन किया गया है। वैदिक वाङ्मय में ऐसे अनेक विचार उपलब्ध होते हैं, जिनमें प्राकृतिक नियमों का वैश्विक संविधान प्रस्तुत किया गया है और उनका महत्व सबके लिए समान रूप से है। अध्यक्षीय उद्बोधन में वैदिक विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन कैलाशचन्द्र मूंदड़ा ने कहा कि गांव के प्रत्येक बालक को हनुमान चालीसा आना चाहिए। यह सभी का नैतिक उत्तरदायित्व है। वैदिक ऋषियों ने उन समस्त उपकारक तत्वों को देव कहकर उनके महत्व को प्रतिपादित तो किया ही है, साथ ही मनुष्य के जीवन में उनके पर्यावरणीय महत्व को भी भली-भांति स्वीकार किया है। इन देवताओं के लिए मनुष्य का जीवन ऋणी हो गया और शास्त्रीय कल्पनाओं ने मनुष्य को पितृऋण और ऋषिऋण के साथ-साथ देवऋण से भी उन्मुक्त होने की ओर संकेत किया है। ज्ञातव्य है कि श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय एवं महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान भारत सरकार उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में वेद ज्ञान सप्ताह का आयोजन किया गया है। विश्वविद्यालय प्रवक्ता एवं संयोजक डॉ मृत्युञ्जय तिवारी ने बताया कि इस कार्यक्रम का संचालन पालीवाल ने किया तथा स्वागत भाषण संस्कृत विद्यालय प्रधानाचार्य रामनिवास गुर्जर ने किया। कार्यक्रम में ग्रामीण गणमान्य लोगों के अलावा महाविद्यालय से स्टाफ के साथ विद्यालय से हनुमान प्रसाद शर्मा, सुभाष आदि सभी शिक्षकगण व अशैक्षणिक कार्मिक तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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