भुवनेश व्यास (अधिमान्य स्वतंत्र पत्रकार)
editप्रसंगवश यह कड़वा है लेकिन सच लिखना पड़ रहा है कि हाल ही उपचुनाव के दौरान जो हिंसा हुई जिस तरह समाज से पिछड़े लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया है यह कोई आज ही नहीं हुआ है, बल्कि देश भर में अपने अधिकारों के लिए पहले भी आरक्षित वर्ग के आंदोलन होते रहे हैं लेकिन वे सब एक दो मामलों को छोड़ दें तो सभी लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्वक होते रहे हैं लेकिन राजस्थान में पंद्रह वर्ष पूर्व हुए गुर्जर आंदोलन में जिस तरह निर्दाेष लोगों को भ्रमित कर हिंसा के लिए उकसाया गया तब से ही देश भर में आरक्षण के आधार पर राजनीति करने वाले नेताओं ने सरकार और प्रशासन पर अपनी धौंस जमाने का हथियार बना लिया है। इस हिंसक आंदोलन के बाद तो हरियाणा, उत्तरप्रदेश का जाट आंदोलन हो, गुजरात का पटेल पाटीदार आंदोलन हो या महाराष्ट्र का मराठा आंदोलन हो, वागड़ का आदिवासी आंदोलन हो, किसान आंदोलन हो, ऐसे सभी आंदोलन में इन स्वार्थी नेताओं ने अपने ही समाज के लोगों को शहीद करवाकर अपनी राजनीतिक दुकान जमा ली लेकिन हिंसा में मारे गये परिवारों का दुख आज भी जस का तस बना हुआ है। देश स्वयं जानता है कि इन आंदोलनों को हिंसा में तब्दील करवाने वाले नेता बाद में किसी ना किसी राजनीतिक दल की गोद में जा बैठते है। इन आंदोलनों में लाखों करोड़ की आमजन व सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया गया जिसमें उन लोगों का सर्वाधिक योगदान रहा है जो ऐसे आंदोलनों के दौरान हिंसा के कारण भयाक्रांत रहते है। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकारें हिंसा के आगे नतमस्तक हो जाती है और बाद में इन्हीं हिंसक मानसिकता वाले नेताओं के आगे घुटने टेककर ना केवल इनके मुकदमें भी वापस ले लेती है बल्कि सरकारी सम्पत्ति का हर्जाना भी छोड़ देती है। न्यायालय में सरकार के अधिवक्ता कमजोर पैरवी करते है। इस स्थिति से आमजन भय के वातावरण में जी रहा है। आश्चर्य होता है कि इन हिंसक नेताओं को जब वे हिंसा करते हैं या हिंसा के लिए लोगों को उकसाते हैं तब उनका विश्वास संविधान व कानून में नहीं होता है लेकिन हिंसक मानसिकता का डर दिखाकर सरकार के जरिये आरोपों से बरी हो जाते हैं तो बोलते हैं कि हमारा कानून संविधान में विश्वास है।
इन हालातों से देश में लोकतंत्र व संविधान की शपथ लेने वालों पर प्रश्नचिन्ह खड़े होते है। ऐसे हिंसक आंदोलन की कोख से उत्पन्न नेता जन प्रतिनिधि चुनने के बाद लेने वाली शपथ में लोकतंत्र व संविधान अनुरूप कार्य करने की कसम खाते हैं लेकिन वो केवल शपथ तक ही सीमित होती है, जब वे सत्ता में हो या विपक्ष में होते हैं तमाम अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक कार्य करते हैं। इनकी भाषा देखिये कि एक कहता है कि अधिकारी को दो तीन थप्पड़ मारने चाहिए थे, एक कहता है कि गुर्जर लिखी गाड़ी पुलिस ने पकड़ी तो मेरा जूता बात करेगा, तो एक और बढ़कर बोलता है जो खुद सवर्ण है लेकिन बात नहीं मानने पर अधिकारी का चमड़ा उतार देने की घोषणा करता है मानों चमड़ा उतारना उसका खानदानी काम हो। अपनी इस हिंसक मानसिकता को वे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करते हैं। वे भूल जाते हैं कि हमने लोकतंत्र व संविधान की शपथ ली है जिसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। इतना ही नहीं इस जातिगत हिंसक मानसिकता के कारण यह लोग अपने ही समाज को अपराध के दलदल में धकेल रहे हैं जिसके चलते अब माफिया, अपराधियों पर कोई कार्रवाई होती है तो संबंधित समाज का जमावड़ा हो जाता है और फिर हिंसा की परिपाटी शुरू हो जाती है। हिंसक हो चुके ऐसे लोगों को कानून का कोई डर ही नहीं है। ऐसे दृश्य कोई नये नहीं है। जिस तरह अपराधियों के मारे जाने पर जातिगत नेता सड़कों पर आकर राजनीति करते है वह स्पष्ट करता है कि राजनीति के भेष में ही हिंसक मानसिकता के लोग बैठे है।
यह हालात चुनाव आयोग, सर्वाेच्च न्यायालय और राजनीतिक दलों के लिए बेहद चिंतनीय है, इन जिम्मेदारों को कुछ ऐसा करना होगा कि समाज को स्वच्छ लोकतंत्र मिले। वे कुछ ऐसा कानून बनाए कि लोकतंत्र और संविधान की कसम खाने वाले नेता को हिंसक गतिविधियों में आरोपित होते ही लोकतंत्र से बिल्कुल दूर करें। ये लोग चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित हो। कहने का मतलब है कि संविधान अनुरूप जातिगत राजनीति हो लेकिन हिंसा की मानसिकता ना हो।
*दुर्ग के ऐतिहासिक स्मारकों को देखकर पर्यटक हो रहे अभिभूत – Chittorgarh News*
*जितनी दुकान उतना अतिक्रमण, शहर में अतिक्रमण निगल रहा सड़के, विभाग सुस्ती में – Chittorgarh News*
जितनी दुकान उतना अतिक्रमण, शहर में अतिक्रमण निगल रहा सड़के, विभाग सुस्ती में
*सहकारी संगठनों के नवाचार में तकनीकी और कुशल शासन पर की चर्चा – Chittorgarh News*
सहकारी संगठनों के नवाचार में तकनीकी और कुशल शासन पर की चर्चा
*थप्पड़ कांड के बाद चित्तौड़गढ़ में आर ए एस अधिकारियों की पेन डाउन हड़ताल – Chittorgarh News*
थप्पड़ कांड के बाद चित्तौड़गढ़ में आर ए एस अधिकारियों की पेन डाउन हड़ताल