बंगाली समाज की सुहागिन महिलाओं ने निभाई सिंदूर बोरोन की परंपरा

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Married women of Bengali society followed the tradition of Sindoor Boron

चित्तौड़गढ़। पांच दिनों तक दुर्गा मां की आराधना करने के बाद विजयादशमी को बंगाली समाज की सुहागिन महिलाओं ने सिंदूर बोरोन की परंपरा निभाई। रविवार को मां दुर्गा की प्रतिमा को विसजिर्त करने से पहले बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेलकर उत्सव मनाया। महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर विजयदशमी की शुभकामनाएं दीं। इस दौरान महिलाओं ने धुनुची नृत्य कर मां को नम आंखों से विदाई दी गई।

शहर के चामटी खेड़ा चौराहे के समीप पांच दिनों से चल रही दुर्गा पूजा के आखरी दिन महिलाओं ने जमकर सिंदूर खेला। दुगार् माता से परिवार की सुख, समृद्धि और पति की लंबी उम्र की कामना की। सभी सुहागिन महिलाओं ने मां दुगार् को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाया। साथ ही मां दुगार् को पान और मिठाई भी खिलाई। इसके बाद महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर उत्सव मनाया। इस दौरान महिलाओं ने जमकर पारंपरिक नृत्य किया। माना जाता है कि जब मां दुगार् मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है। इसके साथ ही कई महिलाएं एक दूसरे के चेहरे पर सिंदूर लगाते हुए नजर आई। यह उत्सव होली के पवर् जैसा लगा। इसके ज़रिए महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा जिंदगी सुखद और सौभाग्यशाली रहे। दशमी के दिन माता की विदाई के समय धुनुची नृत्य के दौरान ढाक-ढोल बजाया जाता है। यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। ढाक ढोल की ताल पर भक्त नाचते और झूमते हुए मां को दोबारा आने का न्योता देते हैं।

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