एक पहल पुरुषों की तरफ से क्यों नहीं की जाती?

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  • Special on Women’s day.
  • महिला दिवस पर विशेष

उदयपुर।  मुझे पुरूषों से डर लगता है। यह सुनने में बेहद अजीब लग सकता है पर है तो सच। 99.9 प्रतिशत औरतें अपनी व अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए पुरुषों पर बिल्कुल भरोसा नहीं करती हैं।
आखिर यह कब से शुरू हुआ है? क्या हमेशा से ऐसा था?
आपको जान कर ताज्जुब होगा कि पुरुषों ने यह विश्वास बहुत पहले ही खो दिया था।मैं पिछले कुछ दिनों से विश्व भर में महिलाओं पर होने वाले अपराधों पर रिसर्च कर रही थी, जिसमें बहुत ही चौंकाने वाले सच सामने आए हैं।यूरोप के कई देशों में सेक्सुअल अब्यूज़ को साबित करना बेहद कठिन रहा है।वहां भी एक लड़की के अनजान लड़कों के साथ चल देने पर गैंग रेप हुआ और फिर उस लड़की को जिस दौर से गुजरना पड़ा, वह डराने वाला है।मीडिया में केस को तरजीह मिली और विश्व भर में प्रदर्शन हुए। वर्षों के संघर्ष के बाद उसे कामयाबी मिली और अपराधियों को सज़ा मिल पाई।
भारत में औरतें अब उस दौर से गुज़र रही हैं। सबसे बड़ी समस्या यही है कि पुरुषों ने कोई पहल भी नहीं की है कि महिलाएं उन पर विश्वास कर सकें। ऑफिस में अक्सर सुनने को मिल जाता है कि महिलाओं से दूर रहो, कहीं रेप के इल्ज़ाम में ना फंसा दें।फिर भी किसी पुरुष को घूँघट ओढ़कर इज़्ज़त बचाते हुए मैंने कभी नहीं देखा है।
आखिर इतना कितना आसान है,पुरुषों को झूठे इल्ज़ाम में फंसा देना? किस पुरुष को इतनी भयानक सज़ा मिली है कि यह वहम पाला गया है ? एक नाम भी बता सकें तो बात समझ आ जाए।
लड़की के पैदा होते ही उसे संभालने की नौबत आ जाए तो फिर भरोसा कैसे होगा। रिश्ते तार- तार करते वक्त कोई भय नहीं होता है कि वे पकड़े जाएंगे। जहां डायपर पहने बच्ची सुरक्षित नहीं, वहां बड़ी उम्र की महिलाओं के रेप पर तो बेहद आसान है कि उनके चरित्र व कपड़ों को इल्ज़ाम दे दिया जाए। पैदा होते ही नसीहतें लड़कियों के हिस्से में आती हैं और लड़के कुल दीपक हैं, इसलिए उन्हें सब कुछ करने की छूट दे दी जाती है । वही बच्चा बड़ा होते होते अपने घर के पुरुषों को महिलाओं के प्रति असभ्य और असम्मानजनक व्यवहार करते हुए देखता है और सीखना शुरू कर देता है।ऐसे बच्चे के लिए सड़क चलती किसी भी लड़की को गलत छूने की कोशिश करना, उनके प्राइवेट पार्ट छूने से लेकर गलत भाषा बोल कर उनको बदनाम करना बहुत कॉमन सी बात है।छोटे बच्चों को डरा धमका कर मोलेस्ट करने के केस बढ़ते ही जा रहे हैं।समाज के अंदर कभी इन बातों को लेकर कोई गंभीर चिंतन किया ही नहीं गया है।यह समाज बस महिलाओं को चुप रहने की सीख दे सकता है।
पुरुषों को कभी बुरा भी नहीं लगता कि उनके ऊपर अधिकांश महिलाएं भरोसा नहीं करती हैं ? आखिर सच क्या है ? डर की वजह तो समझ आ गई है पर हल क्या है?
महिलाओं पर मीम्स बनाना और उनकी शारीरिक बनावट को लेकर मज़ाक़ बनाना बंद किया जा सकता है।अपने बच्चों के अलावा बाक़ी बच्चों को भी मासूम समझ कर प्रोटेक्ट किया जा सकता है।महिलाओं को सेक्स ऑब्जेक्ट समझना बंद किया जा सकता है।ऑफिस में महिला सहकर्मी हंस दे तो उसे अपने साथ चलने का न्यौता नहीं दिया जाए तो शायद बात बन सकती है।किसी मुसीबत में पड़ी महिला को मदद देने के बहाने फ़ायदा उठाने की सोच बदली जा सकती है । महिला सहकर्मी को घर छोड़ने जाते हुए चिपकने की प्रवृत्ति का त्याग करना ज़रूरी है।पब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिलाओं से आपत्तिजनक व्यवहार करना छोड़ा जा सकता है।अपनी पत्नी की सरेआम आलोचना कर महिला मित्र बनाना बंद करना होगा।महिलाओं की हंसी उड़ाने से परहेज़ किया जा सकता है।अब अगर ये सब करना इतना ही आसान होता तो मुझे इतना लिखना नहीं पड़ता।कभी कहीं पढ़ा की एक पुरुष ने अपनी पाली हुई मुर्गियों का रेप किया। कुत्ता ,बिल्ली , गाय तक पर रेप किए जा रहे हैं।अरे, किसी को तो छोड़ देते। इसके बाद कहने सुनने को कुछ रह नहीं जाता है। कुछ दिनों बाद मुझे यह आश्चर्य होना भी बंद हो जाएगा।क़ानून कुछ भी बन जाएं।हर केस कोर्ट में सॉल्व नहीं होगा। कुछ केस ज़मीर की अदालत में भी लड़े जाते हैं।पुरुषों को अपने कमज़ोर होने के अहसास से ही परेशानी हो जाती है पर अपने प्रति बढ़ते हुए असम्मान और अविश्वास के कारण ढूँढने की कोशिश करने की ज़रूरत महसूस नहीं होती है।अभी तो यह खाई और बढ़ेगी।आने वाले समय में बहुत कुछ बदलेगा तो एक पहल पुरुषों की ओर से क्यों नहीं की जा रही? 


– ऋतु सोढ़ी, लेखिका, उदयपुर। 


 

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