चित्तौड़गढ़। दुर्ग के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले गोरा बादल का इतिहास यहां आने वाले पयर्टक और युवा तक पहुंच सके इसके लिए नगर परिषद क्षेत्र के भोईखेड़ा में करोड़ों रुपए खर्च कर पैनोरमा बनाया गया। इसके बावजूद उद्घाटन के तीन साल बाद भी इसके ताले भी नहीं खुल पाए हैं। गोरा बादल पैनोरमा बनाने के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपए खर्च किए गए लेकिन, अभी तक इसका ताला नहीं खुलने से पयर्टकों की दूरी बनी हुई है।
हैरान करने वाली बात यह कि स्थानीय लोगों को भी इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। वीर गोरा और बादल पैनोरमा तक पहुंचना तो बहुत ही मुश्किल है। पैनोरमा तक पहुंचने के लिए जो सड़क है वह पूरी तरह क्षतिग्रस्त है।
यहां पर इतनी झाड़ियां हो गई हैं कि पैनोरमा दिखाई ही नहीं देता है। पैनोरमा में यह दर्शाया गया है कि कैसे जब अलाउद्दीन खिलजी ने राणा रतन सिंह को बंदी बनाया तो गोरा-बादल महिलाओं का वेश धारण कर राणा को छुड़ाने रानी पद्मिनी के साथ आए थे। दोनों की लड़ते-लड़ते गर्दन कट गई। फिर भी दोनों लड़ते रहे। उन्होंने वीरगति को प्राप्त की। इसी स्थान पर सालों से क्षेत्रवासी पूजा करते हैं। इसीलिए सरकार ने यहीं पर पैनोरमा बनाने का निणर्य किया था। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने गोरा-बादल पैनारमा की वाहवाही लूटने के लिए अपनी-अपनी पट्टिका लगा ली लेकिन, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं। भाजपा सरकार ने 18 अप्रेल 2018 को इस पैनोरमा के यहां भूमि पूजन किया और कांग्रेस सरकार ने 20 अगस्त 2020 को इसका उद्घाटन किया, लेकिन देखरेख के अभाव में पयर्टकों से दूर यह पैनोरमा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है।