Due to forest rules, tribal children have been deprived of school buildings for two decades
भुवनेश व्यास (अधिमान्य स्वतंत्र पत्रकार)
चित्तौड़गढ़। राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिले की सुदूर पिछड़ी हुई जनजाति बाहुल्य भैंसरोड़गढ़ पंचायत समिति क्षेत्र में एक प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को वन विभाग के जटिल नियमों के चलते बीस सालों से भवन नहीं मिल पा रहा है जबकि इस दरम्यान यहां से तीन किलोमीटर दूर आलीशान रिसोर्ट बन चुका है। हालात यह है कि कच्चा ढांचा भी शिक्षा विभाग खड़ा नहीं कर पा रहा है और मासूम बच्चें को तेज गर्मी व बरसात में खुले में पढ़ाई करनी पड़ रही है।
प्राप्त जानकारी अनुसार जिले की भैंसरोड़गढ़ पंचायत समिति क्षेत्र की श्रीपुरा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाली भील समुदाय के बाहुल्य वाली ढाणी नासेरा में वर्ष 2002 में राज्य सरकार ने राजीव गांधी पाठशाला स्वीकृत की थी जिसे बाद में राजकीय प्राथमिक विद्यालय बना दिया गया। इस ढाणी को वन विभाग ने वन क्षेत्र के लिए आरक्षित घोषित किया हुआ है। शिक्षा विभाग ने यहां पर विद्यालय भवन बनाने के लिए जगह मांगी तो वन विभाग ने वन अधिनियम का हवाला देते ना तो भूमि आवंटित होने दी और ना ही कच्चा भवन बनाने दिया और तब से ही यह विद्यालय जहां इस समय कुल सोलह बच्चे अध्ययनरत है लकड़ियों पर केवल घासफूस की छत के नीचे चल रहा है। जबकि इसी दौरान यहां से बमुश्किल तीन किलोमीटर की दूरी लुहारिया ग्राम पंचायत की आरक्षित वन भमि पर वर्ष 2006 में आज के एक बड़े नेता की पत्नी व एक बड़ी नैत्री के पुत्र की भागीदारी वाली कंपनी का आलीशान रिसोर्ट बन गया था जिसे तत्कालीन जिला कलेक्टर आरएस गठाला ने वन अधिनियमों के तहत ही बंद करवाया, यहां तक इस रिसोर्ट के लिए वन अधिनियम के सारे नियम कायदों को ताक में रखकर बिजली कनेक्शन तक जारी कर दिये थे।
अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) ओमप्रकाश मेनारिया ने बताया कि हाल ही में जिला शिक्षा अधिकारी राजेंद्र शर्मा के नेतृत्व में एक दल ने यहां का दौरा किया तो इस हालात में बच्चों के अध्ययन की रिपोर्ट पेश होने के बाद विभाग ने जिला कलेक्टर आलोक रंजन ने एक अर्ध शासकीय पत्र वन विभाग को लिखकर जन सहयोग से विद्यालय के लिए प्री फैब्रिकेशन ढांचा (वेस्ट कंटेनर को कमरें का रूप) उक्त ढाणी में रखने की अनुमति मांगी लेकिन उस पर भी वन विभाग अनुमति देने में आनाकानी कर रहा है। उक्त ढाणी में कुल पच्चीस घर है और सभी भील समुदाय से है। विद्यालय में दो महिला अध्यापक पूर्ण समर्पित होकर ऐसी दुरूह स्थिति में भी बच्चों को शिक्षित करने में कोई कसर नहीं रखे हुए है। बरसात के दौर में तो यहां बच्चों को पढ़ाना अति मुश्किल हो जाता है जबकि तेज गर्मी के दौर में बच्च्े व अध्यापिकाएं लू के थेपेड़े खाकर भी शिक्षा की अलख जगाए हुए है।
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