आजादी के 77 वर्ष बाद चित्तौड़गढ दुर्ग बना 77वें महाराणा के राजतिलक का साक्षी

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आजादी के 77 वर्ष बाद चित्तौड़गढ दुर्ग बना 77वें महाराणा के राजतिलक का साक्षी

सलुम्बर की स्याही और भीण्डर का भाला

रावत देवव्रत के रक्त से हुआ विश्वराज का राजतिलक

चित्तौड़गढ़़। आजादी के 77 वर्ष बाद विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक चित्तौड़ दुर्ग लगभग पांच शताब्दी के पश्चात मेवाड़ के महाराणाओं के वशंज के रूप में 77वें महाराणा विश्वराज सिंह के राजतिलक का साक्षी बना है जहां मागशीर्ष कृष्णा दशमी को फतहप्रकाश महल परिसर में आयोजित विशाल समारोह में मेवाड़ी परंपरा के अनुरूप मेवाड़ के पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह के निधन के पश्चात उनके पुत्र विश्वराज सिंह का मेवाड़ के महाराणा के रूप में राजतिलक किया गया।

राजतिलक के पश्चात गद्दी पर विराजे विश्वराज सिंह मेवाड़

मेवाड़ की परंपरानुसार सलुम्बर की स्याही और भीण्डर का भाला के अनुसार सलुम्बर के रावत देवव्रत सिंह द्वारा तलवार से अंगूठे का रक्त निकालकर महाराणा को राजतिलक के रूप में रक्त तिलक किया गया। इस दौरान मेवाड़, मालवा, मारवाड़, वांगड़, हाडौती, सहित देश और प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से बडी संख्या में आये राज परिवार के सदस्यों के साथ ही 16 राव एवं 32 उमराव के अलावा सवर्समाज के लोगों ने राजतिलक ने सहभागिता निभाते हुए महाराणा को नानाविद नजराने भेंट किये।

इस मौके पर कई विदेशी पयर्टको ने भी राजतिलक समारोह को अपने कैमरे में कैद करने की खासी रूचि दिखाई। महाराणा के समारोह स्थल पहुंचने पर बैण्ड की मधुर धूनों, पुलिस बैण्ड की धून, ढोल-नगाड़ो, तोपों की सलामी, भारी अतिशबाजी, पुष्पवषार् के साथ उनका आत्मिक स्वागत अभिनंदन किया गया। विश्वराज सिंह ने फतहप्रकाश महल पहुंचते ही सबसे पहले दरीखाने पहुंचकर नमन किया, तत्पश्चात् उन्हें विधि-विधान के साथ स्थापित राजगद्दी पर आसीन किया गया।

राजतिलक के दौरान मेवाड़ राजघराने से जुड़े दमामी द्वारा महाराणा की शान में आप जुग-जुग जियो रे मेवाड़ शोभा आपरी करा की प्रस्तुति देकर संपूर्ण वातावरण को आनंदित कर दिया। इसी दौरान महल की प्राचीर से अनवरत् महाराणा प्रताप, महाराणा विश्वराज सिंह का जयकारा गूंजता रहा। इस बीच आदिवासी गैर-नृत्य भी आकषर्ण का केन्द्र रहा। राजतिलक समारोह में क्षत्रिय समाज से जुड़े ठिकानेदार, राव-उमराव परंपरागत वेशभूषा में शामिल हुए वहीं मेवाड़ के राजघराने से जुड़े राव-उमराव द्वारा सफेद पाग पहनकर समारोह में भागीदारी निभाई गई जिनकी पाग का रग-बदलाव उदयपुर स्थिति समोर बाग में महाराणा के साथ करवाया गया।
दुगर् मागर् पर जाम के साथ गूंजते रहे ढोल-नगाड़े
दुगर् के फतहप्रकाश महल में सोमवार को आयोजित महाराणा विश्वराज सिंह के राजतिलक समारोह को लेकर क्षत्रिय समाज के साथ-साथ सवर् समाज में भी खासा उत्साह देखा गया, हर कोई राज तिलक की अनूठी परंपरा का साक्षी बनना चाहता था, इसी कारण दुगर् के पूरे मागर् में बड़े सवेरे से लेकर कायर्क्रम के दौरान वाहनों की लंबी कतारो से जाम लगा रहा वहीं दुगर् के सातों दरवाजों और प्राचीर से आगन्तुक अतिथियों पर अनवरत पुष्पवषार् का दृश्य अकल्पनीय था। महाराणा के सभा स्थल पहुंचने पर फुलों की बिछात पर ढोल-नगाड़ों के साथ उन्हें मंच तक ले जाया गया, समारोह संपूणर् होने पर भी पुष्प वषार् का दौर चलता रहा।
सब साथ मिलकर मेवाड़ का नाम रोशन करते रहेंगे: महाराणा विश्वराज सिंह
राजतिलक समारोह में महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ ने मेवाड़ी भाषा में कहा कि मेवाड़ का इतिहास पिछले 1500 वषोर् से रहा है कि उसमें सभी को साथ लेकर निभाया जाता था, वे भी इसी परंपरा का निवर्हन करते हुए जो जिम्मेदारी उन्हें दी गई है उसके अनुरूप सब साथ मिलकर मेवाड़ का नाम रोशन करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि मेवाड़ का दृढ संदेश जो दृढ राखे धमर् को तैही राखे करतार’ के अनुरूप धमर् और समाज की रक्षा के लिए वे सदैव तत्पर रहेंगे ताकि हमारी सनातन धमर् संस्कृति मेवाड़ नाथ एकलिंग एवं कुलदेवी बायण माता के आशीवार्द से अनवरत् सक्षम रहे। इस मौके पर मेवाड़ राजवंश से जुड़े तोपची खानदान मोहम्मद अकात के परिजनों द्वारा भी विभिन्न समाजों के साथ महारणा को नजराना भेंट किया गया। समारोह में महन्त महामण्डलेश्वर उत्तम स्वामी, महामण्डलेश्वर चेेतनदास महाराज, सुरज कुण्ड के अवधेशानंद जी, स्वमी सुदशर्ना चायर् सहित कई संतगण, धरोह संरक्षण प्राधिकरण अध्यक्ष औंकार सिंह लखावत, सांसद सीपी जोशी, विधायक चंद्रभान सिंह आक्या, श्रीचंद कृपलानी एवं कई जनप्रतिनिधियों के साथ ही हजारों लोग मौजूद थे।
श्री कल्लाजी वेद विद्यालय द्वारा वेद ऋचाओं का गान रहा प्रशंसनीय
मेवाड़ के 77 वें महाराणा के रूप में विश्वराज सिंह के राजतिलक आयोजन सोमवार को फतहप्रकाश महल में आयोजित किया गया। राजतिलक के दौरान श्री कल्लाजी वेद विद्यालय के आचायार्े एवं 51 बटुकों द्वारा प्रस्तुत चारो वेदों की ऋचाओं का गान प्रशंसनीय रहा। हजारों लोगों की उपस्थिति में राजतिलक के दौरान जब वेद विद्यालय के बटुक सस्वर चतुवर्ेद पारायण किया गया, तो लगा जैसे हम वैदिक काल में ही हों। जिससे भक्तिमय और शक्तिमय वातावरण बन गया। आचायर् एवं बटुकों ने चतुवर्ेद की ऋचाओं से मंगल कामना की। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के चेयरपसर्न कैलाश मूंदड़ा और कथा वाचक गौनंदन विकास नागदा ने महाराणा से भेंट की। भेंट में नजराना पेश किया गया। साथ ही उपरना और रुद्राक्ष की माला पहनाकर 493 साल बाद चित्तौड़ दुगर् पर राज्याभिषेक की मंगल कामना के साथ शुभकामना दी। श्री कल्लाजी वेदपीठ एवं शोध संस्थान एवं श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय की संपूणर् जानकारी के साथ आगामी कल्याण महाकुंभ के लिए भी निमंत्रण दिया गया। इस से पूवर् वीरवर कल्लाजी और जयमल जी के स्मारक पर महाभिषेक किया। महाराणा सहित समस्त लोगों ने बटुकों के सस्वर वेद की ऋचाओं की प्रशंसा की। वहीं वीरवर कल्लाजी और जयमल जी के स्मारक पर महाराणा विश्वराज सिंह ने दशर्न किए। आचायर् सीताराम शमार्, ओम पांडे, अमित तिवारी और किरण दास वेद परायण में बटुकों के साथ मौजूद थे।

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